दुश्मनी हमसे भले हज़ार रक्खो
मगर अपने घर पर भी पहरेदार रक्खो
ये जो मेरी हार के,चर्चे तमाम करते हैं
मैं लौट आया हूँ, हथियार तैयार रक्खो
सारी मोहब्बत आज ही लुटा दोगी क्या
थोड़ी बहुत कल के लिए भी उधार रक्खो
इस हिंदुत्व , इस शरीयत से नफ़रत है मुझे
इंसां का खून हो, इंसां से थोड़ा प्यार रक्खो
अगर पानी में भँवर उठा है, उठने दो
तुम नज़र दरिया के बस उस पार रक्खो
इश्क़ में थोड़ा सा इनकार भी जायज़ है
तुम बस दिल को इसी कदर बेक़रार रक्खो
-रणदीप 'भरतपुरिया'
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