खुली किताब की तरह हूँ... अपने बारे में बस इतना कहना चाहता हूँ कि.. खुद से खुद की ये जंग है, अपना ना अब कोई संग है, हाले दिल का क्या कहूँ, किस्मत भी अपनी तंग है, खुद से खुद की ये जंग है, उतरा चेहरे का रंग है, यारों का भी ना कोई संग है, कुछ तो दर्द दे रहा है मुझे, विधाता का भी मुझसे नाता बंद है, खुद से खुद की ये जंग है, जेब है खाली रुपये कुछ चंद हैं, सिक्कों का मुझसे मोह भंग है, टूटा हुआ हूँ इस कदर, के क्या कहूँ, भरा आँखों में लाल रंग है, खुद से खुद की ये जंग है, रह गया ना दुनिया से अब कोई रंज है अपना हर दिन अब मस्त मलंग है, ना सोंच रही आगे की अब मुझे, ये जंग भी माना, मेरे जीवन का एक अंग है, खुद से खुद की ये जंग है, अपना ना कोई अब संग है... दीपक चौरसिया कैसी भी परिस्थिति हो मुस्कराते रहिए.... 🤗😁😀😂😂😂😝😝🤣🤣🤣😉😘😘😘😝
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