गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है,
बेबाक मोहब्बत को भी, सपना होते हुए देखा है !
लोग कहते है कि मोहब्बत सच्ची नहीं होती,
उनको भी मक्कारी का सौदा करते हुए देखा है !
कंधो पे सर रख कर मेरे, किसी और के लिए रोते है,
गमों का बोझ किसी और का, मेरे कंधों पर ढोते है !
अजीव दास्तां है दुनिया कि भी,चाहने बालों को खोते है,
मेरे मुंह पर हंसने वाले,किसी और के लिए रोते है !
"विवेक" गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है,
वो मेरे थे बस इसी बहम में,उनको भी खोते देखा है !
©Thakur Vivek Krishna
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here