Subhash Singh

Subhash Singh Lives in Katni, Madhya Pradesh, India

शिक्षक, लेखक, कवि

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Unsplash यहाँ आना हमेशा ही,बहुत ही खास होता है। सुकोमल स्पर्श पाते ही,मधुर एहसास होता है। हमारा भाग्य था उज्ज्वल,तुम्हारा साथ मिल पाया, अगर साथी मिला मन का,मृदुल मधुमास होता है। ©Subhash Singh

#कविता #lovelife  Unsplash यहाँ आना हमेशा ही,बहुत ही खास होता है।
सुकोमल स्पर्श पाते ही,मधुर एहसास होता है।
हमारा भाग्य था उज्ज्वल,तुम्हारा साथ मिल पाया,
अगर साथी मिला मन का,मृदुल मधुमास होता है।

©Subhash Singh

#lovelife

13 Love

White आशीष चाहती हूँ,दीर्घायु कर सजन को। सौभाग्य को अमर कर,उज्ज्वल करो सदन को। सुन ले पुकार चंदा,हों चार सुख हमारे, हँसकर जियें सदा हम,खुशहाल कर चमन को। ©Subhash Singh

#कविता #karwachouth  White आशीष चाहती हूँ,दीर्घायु कर सजन को।
सौभाग्य को अमर कर,उज्ज्वल करो सदन को।
सुन ले पुकार चंदा,हों चार सुख हमारे,
हँसकर जियें सदा हम,खुशहाल कर चमन को।

©Subhash Singh

#karwachouth

12 Love

दुर्गा नवम् स्वरूपा,अठ सिद्धिदायिनी हैं। देतीं विवेक हमको,मांँ मोक्षदायिनी हैं। गंधर्व यक्ष राक्षस,करते सदैव पूजा, नारायणी हमारी,माया विनाशिनी हैं। ©Subhash Singh

#कविता #navratri  दुर्गा नवम् स्वरूपा,अठ सिद्धिदायिनी हैं।
देतीं विवेक हमको,मांँ मोक्षदायिनी हैं।
गंधर्व यक्ष राक्षस,करते सदैव पूजा,
नारायणी हमारी,माया विनाशिनी हैं।

©Subhash Singh

#navratri

10 Love

सप्तम् स्वरूप दुर्गा,माँ कालरात्रि आओ। हैं दैत्य दुष्ट निर्मम, इनसे हमें बचाओ। कर दो विनाश माता,निर्बल पुकार करते, रणचंड़िका तुम्हीं हो,संहार कर दिखाओ। ©Subhash Singh

#कविता #navratri  सप्तम् स्वरूप दुर्गा,माँ कालरात्रि आओ।
हैं दैत्य दुष्ट निर्मम, इनसे हमें बचाओ।
कर दो विनाश माता,निर्बल पुकार करते,
रणचंड़िका तुम्हीं हो,संहार कर दिखाओ।

©Subhash Singh

#navratri

10 Love

White दिन ढलता है तो ढलने दो। रवि जलता है तो जलने दो।। मेरे लिए नहिं कोई विकल। छलक गए आँसू पिघल-पिघल।। मेरे जीवन में ऊथल-पुथल। फिर भी चलता हूँ सँभल-संँभल।। अब धीरे-धीरे चलने दो।। घर में छाया घना अँँधेरा। लुटा-पिटा सा मेरा डेरा।। फिर भी लगता माया फेरा। जग झूठा क्या तेरा-मेरा।। हाँ!नियति नटी को छलने दो। ©Subhash Singh

#कविता #safar  White 
दिन ढलता है तो ढलने दो।
रवि जलता है तो जलने दो।।
मेरे लिए नहिं कोई विकल।
छलक गए आँसू पिघल-पिघल।।
मेरे जीवन में ऊथल-पुथल।
फिर भी चलता हूँ सँभल-संँभल।।
अब धीरे-धीरे चलने दो।।
घर में छाया घना अँँधेरा।
लुटा-पिटा सा मेरा डेरा।।
फिर भी लगता माया फेरा।
जग झूठा क्या तेरा-मेरा।।
हाँ!नियति नटी को छलने दो।

©Subhash Singh

#safar

13 Love

नवरात्रि पर्व पावन,पंचम दिवस मनोहर। साकार स्कंदमाता,चहुँ ओर दृष्टिगोचर। माँ मोक्षदायिनी हैं,अनुपम ममत्व वाली, अज्ञान को मिटा माँ नवचेतना प्रखर कर। ©Subhash Singh

#कविता #navratri  नवरात्रि पर्व पावन,पंचम दिवस मनोहर।
साकार स्कंदमाता,चहुँ ओर दृष्टिगोचर।
माँ मोक्षदायिनी हैं,अनुपम ममत्व वाली,
अज्ञान को मिटा माँ नवचेतना प्रखर कर।

©Subhash Singh

#navratri

15 Love

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