कितने तहजीब से बात की मैंने
हर लफ्ज़ को तौल कर लिखा है ।
बेचैनी कहीं दिख ना जाए मेरी
इसलिए चेहरा छुपा रखा है ।
कैसे कह देते कितना याद आए तुम
जो तुम्हे अच्छा लगे वहीं लिखा है ।
उम्मीद थी समझोगी हाल ए दिल मेरा
कई बार तेरी आंखो में देखा है।
बेचैन दिखे पैर तुम्हारे
चेहरा तुमने भी छुपा रखा है ।
बिगड़े चादर का किस्सा पुराना हो गया है
एक तकिये पे दो सिर रक्खे जमाना हो गया है
मुद्दा तो उन्हें याद करने का है...
शेर ओ शायरी तो बस एक बहाना हो गया है ।
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