कभी कभी सोचती हूं ,आत्मसम्मान के नाम पर अहंकार या गुस्सा इतना इंसान को इतना कठोर बना देता है कि मानवीय रिश्तों को भूल जाते हैं लोग ,कोई बीमारी झेल रहा या बीमार है उसकी खैरियत भी लोग नहीं पूछते,सच इंसान को पहचानना बहुत मुश्किल है,जहां तक मेरा मानना कोई व्यक्ति अतीत में हमें चोट भी पहुंचाए या उनकी बातों से तकलीफ भी हुई हो तो अगर वो किसी भी तरह के तकलीफ में हो तो इन्सान होने के नाते उसकी तकलीफ में शामिल होना चाहिए पर अकड़ वश लोग ऐसा नहीं करते चाहे अतीत में वो इंसान आपके लिए कुछ भी करता हो, बस नफरत वाली बात ही याद रहती है,पर मानवता से बढ़कर कुछ भी नहीं आपकी झूठी अहम भी नहीं।
सभी का दिन मंगलमय हो।
©`sanju sharan
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