ज्यादा समझदार बनकर बचपन की शरारतें खोने लगे हैं,
लगता है हम बड़े होने लगे हैं।
मुस्कुराते चेहरे के पीछे छुप-छुपकर रोने लगे हैं,
लगता है हम बड़े होने लगे हैं।
भविष्य की चिन्ता करते-करते सोने लगे हैं,
लगता है हम बडे़ होने लगे हैं।
मन में नयी-नयी ख़्वाहिशों का बोझ ढोने लगे हैं,
लगता है हम बड़े होने लगे हैं।
छोटी-छोटी बातें उदास कर जाती है ,
जुबां किसी से ज्यादा कुछ कह नहीं पाती है,
जिंदगी है,चलता है..यही समझाकर खुद को,खुश होने लगे हैं ,
लगता है हम बडे़ होने लगे हैं।
खुद से ही खुद की बातें बोलने लगे हैं,
किसी से कुछ बोलने से पहले बातों को तोलने लगे हैं,
ज़िन्दगी के जो फैसले पहले मम्मी-पापा लिया करते थे,वो भी अब हम ही पर छोड़ने लगे हैं,
लगता है हम बड़े होने लगे हैं।
भरी मह़फिल में भी खुद को अकेला पाने लगे हैं,
लगता है अब हम बड़े होने लगे हैं।
©"दीया"
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