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तुम साथ होती हो तो एक सुकून होता है
घर घर नहीं जहां बीवियों का शोर नहीं होता है
चली जाती हो तुम जब मायके अपने
जिंदगी में मानो जैसे खुशी सी चली जाती हो।
अकेली सी लगती है,अकेले से यह कमरे
ना कोई छेड़ने को मिलता ना कोई डाट लगाता है।।
बोलते है सब मज़े है अब तेरे
पर खाली सा यह घर मानो जैसे एक जेल खाना सा लगता हो।।
तेरे बिन ओ सजनी मुझे यह घर घर नहीं लगता है।।।
नहीं अच्छा लगता तुम्हारे बिन अब इस साजन को तेरे
साथ की आदत हो गई है,अजीब सी लगती है यह ज़िंदगी,
तेरे बिन दो दिन में ही
तेरे जाने से जैसे मेरी सारी खुशियां खोई खोई सी लगती है।।।।
आजा ओ सजनियां इस आंगन को फिर से सजा दे।
अपनी इस खुशबू से अपनी इस हसी से,
मेरे घर को फिर से घर बना दे!!
✓Ishitav
@poetrysoul_999
©Ishita Verma
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