"धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी"
शंका की बू सूंघ के दौड़े, अंधे जंगली कुत्तों जैसी
दाँत गाड़ के चीर फाड़ के, नोच खाएगी डेमोक्रेसी
फिर कौओं का झुंड बनाकर, लाश पे काँय काँय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी
कुंठाओं के नाखूनों को, नर्म माँस का चस्का भाए
लाल हैं गुस्से से जो माथे, किसके खूँ से प्यास बुझाएँ
हर दूजे आदम के भीतर, हत्यारे का बीज छुपा है
ज़हर बुझे धर्मों का पानी, रोज़ उसी को सींच रहा है
बेकारी सस्ते दामों पर, खाद उसे सप्लाय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी
प्रजातंत्र के कार्डबोर्ड पर, साँप और सीढ़ी रचा गया है
सीढ़ी का विज्ञापन देकर, साँप सभी को पचा गया है
जो प्रयोगशाला के मूषक, अक्लों से बेरोज़गार हैं
बाहुबल की राह दिखाती, हिंसा उनका रोज़गार है
तानाशाह की प्रबल प्रेरणा, मूषक को महाकाय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी
भीड़ थी किसकी कौन मरा है, इसमें सबकी दिलचस्पी है
सबके अपने हित हैं यारों, सबके हाथ मे एक पर्ची है
पर्ची से लीडर का भाषण, मार के रट्टा बक देंगे वो
भीड़ के आगे लाओ उनको, चिंदी चिंदी उधड़ेंगे वो
फिर उनके चिथड़ों पे सत्ता, वोटों का व्यवसाय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी
- पुनीत शर्मा
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