हम शायद प्यार समझ बैठे थे...
क्या ख़ूब थे वो पल जब तुम रोज़ मिला करते थे उन दिनों बंजर ज़मीं पर भी फूल खिला करते थे
क्या याद है वो पल जब नज़रो से बाते हुआ करती थी उन दिनों तो नज़रे ही ज़ुबाँ का काम किया करती थी
क्या तुम्हे याद है जब सामने तुम मेरे आया करती थी सहम जाती थी रूह मेरी जब तुम मिलकर मुस्कुराया करती थी
क्या तुम भूली तो नही जब दिन में कई बार सामना किया करते थे तुम्हे क्या लगा इतेफाक़ है, नही, हम कोशिशें किया करते थे
लगता है अब तुम्हे कुछ याद नही शायद तुम सही और हम गलत समझ बैठे थे, तुम उन कोशिशों को सिर्फ़ इतेफाक़ और हम शायद प्यार समझ बैठे थे, तुम उन कोशिशों को सिर्फ़ इतेफाक़ और हम शायद प्यार समझ बैठे थे...
:- वीरेंद्र
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here