रासन,राष्ट्रवाद का कुछ यूं पक रहा है
नियत गिर चुकी है मक्खियो सी मलाई पर
और दरवाजे किचन का ढक रहा है
खिचढ़ी सी खूबसूरत है ये वतन हमारा
चिपकती है बर्तन से सोच, कोई बर्तन पटक रहा है
मैं भी उसका दीवाना था,
जिसका तू आज है।
मुझे मुददतें लगे मनाने में,
तूने क्या किया जो उसके साथ है।
अब यह जानना भी ज़रूरी होगा
कि-दीये मे तेल कितना बाकी है
बेसक अभी उजाला है आंगन में
काल के कटने के बाद,एक रात भी तो आती है
-surendra
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