लिख सकूं अगर तो मैं खुशियां लिखना चाहती हू,
तमाम विसंगतियों को रख कर परे,
मैं संस्कारों की रीतियां लिखना चाहती हू।
रखकर जिन्दगी की आपाधापी पर अल्पविराम ,
मैं कुछ पल का सुकून लिखना चाहती हू।
लगाकर सफलता और असफलता पर उद्धरण चिन्ह ,
मैं अपनी हर उपलब्धियां और कमियां लिखना चाहती हूं।
विसमयादिबोधक का लेकर सहारा,
मैं समाज का दर्पण लिखना चाहती हू।
हटाकर संदेह के सारे प्रश्न चिन्हों को ,
मैं मंजिल तक पहुंचने का हुनर लिखना चाहती हूं।
और जो बन पाऊं एक अच्छी लेखक,
तो मैं बस पाठक के दिल का हर पन्ना लिखना चाहती हूं ।
©Megha jain
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