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संगीत मेरा जूनून है और कविता मेरा शौक़
सानू
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हवाओं से मेरा पता पूछती है मुसाफ़िर को राह ए वफ़ा पूछती है हमीं छोड़ कर आ गए थे फ़िज़ा को यही बात बाद-ए-सबा पूछती है सफ़र ख़त्म करना मुनासिब नहीं था लहर हमसे इसकी वजा पूछती है ©सानू
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ज़माना हो गया है लौटकर वो आ रहा है कई अरसे से कोई नज़्म मेरी गा रहा है बता देना उसे पत्थर पिघल दरिया बने हैं वही जो इस नदी से उस नदी को जा रहा है ©सानू
तुम साथ रहो तो साथ तुम्हारे हम ये कहानी जी जायें इक याद तुम्हारी आ जाये हम पूरी जवानी जी जायें इक पर्वत हो कुछ बादल हो और दूर कहीं सूरज डूबे फिर बजे जिधर पायल तेरी वो शाम सुहानी जी जायें ©सानू
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इस तरफ़ तुम्हारी आँखे हैं उस तरफ़ अदा से मरना है इक जान थी वो भी बची नहीं अब पैकर से क्या करना है चलो तुम्हारे चेहरे पर अपना मुस्तक़बिल देखता हूँ क्योंकि अब रात को फिर मैंने अपने माज़ी से लड़ना है ©सानू
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