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किसी रोज़ छॉंव की तलाश में साँसे पर रही है कम , चलो पेड लगाए हम ✊🌿 हीरा नही हरियाली चाहिए #बकस्वाहा_जंगल_बचाओ_अभियान ©Ankit Bhadouriya
Ankit Bhadouriya
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मुझे छाँव में रखकर खुद जलता रहा धूप में मैंने देखा है एक फरिश्ता अपने पापा के रूप में ©Ankit Bhadouriya
5 Love
अपेक्षाएं जहाँ समाप्त होती हैं आनंद वहीं से प्रारंभ होता है 😊😊 ©Ankit Bhadouriya
महंगाई का दौर है और बेरोजगारी ने मारा है कोफी की औकात कहाँ अब तो बस चाय का ही सहारा है .......✍✍नसेड़ी चाय के ©Ankit Bhadouriya
4 Love
गणित पढ़ते-पढ़ाते तो बरसों गुज़र गया, तेरी आँखों में जो झाँका तो जाना सब शून्य है!! ©Ankit Bhadouriya
6 Love
हम कहाँ तुम्हें छोड़कर जाने वाले थे मगर क्या करें तुम कहाँ हमारे थे 🥺🥺 ©Ankit Bhadouriya
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