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अंतर मन जब हो उदास , कीजिये पल्लव की कविता का रसपान।
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पल्लव की डायरी हर युग मे चलन व्यवस्था का बदला है कभी समाजिक व्यवस्था का चलन कभी पंचायते न्याय करती थी राजा रजवाड़े सब आये और गये मगर नैतिकता मूल रूप से सर्वोपरि रहती थी अब लोकतंत्र और संसदीय परम्परा है प्रतिनिधि सब जनता के होते है नीयत और सेवा का भाव हो तो कोई भी व्यवस्था सफल हो सकती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"
Praveen Jain "पल्लव"
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पल्लव की डायरी वातावरण दूषित, व्यबस्था मन को कसौटती है आपाधापी मची है जीवन मे खुराक मिलावटी और जहरीली मिलती है खिले है व्यसन के द्वार इनकी लतो से जीडीपी सरकारों की बढ़ती है डिप्रेशन और निराशा के अधीन जीवन जो रोगो को आमंत्रण देती है स्वस्थ रहना अब दूर की कौड़ी हो गया बीमारियों से कई देशों की अर्थव्यवस्था चलती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"
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पल्लव की डायरी चिंतवन की धारा ,संवेदना और सेवा से जोड़ते खुद के अंदर ईश्वर खोजते मिथ्याभावो की संरचना करके धर्म के नाम पर ढोंगी ठगते ये आडम्बर शाखों से मानवता के फूल गिरा देगे मसल देगे कौमो को ये शातिर एकता की खुशबू मिटा देगे सत्ता की करतूतें ऐसी ही रही कई विभाजन भारत मे करा देगे प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"
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पल्लव की डायरी आत्मनिर्भय कैसे बनते झूठ का यहाँ कारोबार है आपदाओं को अवसर बनाने की होड़ सियासतों के रोज लगते दाँव है आत्मसम्मान सब का खो रहा किस्मत आजमाने का नही मार्ग है फरेबों और झूठो ने गठ जोड़ बना लिया समस्याओं का खड़ा पहाड़ है सच्चाई की फजीहत हो गयी गुमराह सारा जहान है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"
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पल्लव की डायरी अब खुद गुमराह है संसद एक दशक से विपक्ष का भार सह नही पाती है खुद एक समस्या बन गयी ज्वलन्त मुद्दों से भटकाकर चीरहरण जन जन का करती है पाशे शकुनि जैसे सत्ताधीशो के दाँव पर फिर भारत को लगाया जा रहा है शय्या पर लोकतंत्र लेटा हठी दुर्योजन सब नैतिकता खोता है गिरा कर स्तर संसद का हर मुद्दा दरकिनार करता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी एजेंडे के तहत महापुरुष भी बे दखल आजादी के दीवानो को ठुकराया जा रहा है काला चेहरा सत्ताधीशो का अंग्रेजो जैसा बर्ताव जनता से किया जा रहा है बढ़ गया जोर जुर्म इनका टेक्सो से भुखमरी का शिकार बनाया जा रहा है नैतिकता संवेदना और सँविधान से ना इनका वास्ता हठधर्मिता से देश चलाया जा रहा है भगतसिंह सुभाष चन्द नेहरू अम्बेडकर सब गौण सिर्फ वीर सावरकर का गुणगान किया जा रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"
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