नवनीत ठाकुर

नवनीत ठाकुर Lives in Mandi, Himachal Pradesh, India

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क्या कहें, कैसे बयाँ करें ये तड़प का आलम, वो चेहरों के फ़रेब को सच्चा हाल जान बैठे। इक झलक में सारे ग़म छुपा लेते हैं हम, मगर वो इसे हमारे इश्क़ का कमाल मान बैठे। दिल की टूटन को भी मोहब्बत का रंग समझा, वो खामोशियों में छुपे दर्द को सवाल मान बैठे। कैसे बताएं कि ये हँसी सिर्फ़ एक नक़ाब है, हमारी हर बेबसी को वो अपना हक़ मान बैठे। ©नवनीत ठाकुर

#शायरी  क्या कहें, कैसे बयाँ करें ये तड़प का आलम,
वो चेहरों के फ़रेब को सच्चा हाल जान बैठे।
इक झलक में सारे ग़म छुपा लेते हैं हम,
मगर वो इसे हमारे इश्क़ का कमाल मान बैठे।
दिल की टूटन को भी मोहब्बत का रंग समझा,
वो खामोशियों में छुपे दर्द को सवाल मान बैठे।
कैसे बताएं कि ये हँसी सिर्फ़ एक नक़ाब है,
हमारी हर बेबसी को वो अपना हक़ मान बैठे।

©नवनीत ठाकुर

शेरो शायरी

12 Love

कभी जो अनुभव हुआ, वही आदत बन जाती है, सपनों के पीछे भागते, एक नयी राह बन जाती है। जो देखा या सुना, वही भविष्य का ख्वाब बन जाता है, इन्हीं ख्वाहिशों के साथ, हर कदम उलझ जाता है। भावनाओं से न तुम, अब कामनाओं से बह रहे हो, जिन्दगी के रास्ते में, बस ख्वाबों के ही साये में रह रहे हो। इन ख्वाहिशों के सागर में, खुद को खो रहे हो। समझो, जो तुम चाहो, वही तुम्हारी हकीकत बन जाती है, लेकिन कभी-कभी, यह चाहत ही दुःख की असली वजह बन जाती है। ©नवनीत ठाकुर

#विचार #चाहत  कभी जो अनुभव हुआ, वही आदत बन जाती है,
सपनों के पीछे भागते, एक नयी राह बन जाती है।
जो देखा या सुना, वही भविष्य का ख्वाब बन जाता है,
इन्हीं ख्वाहिशों के साथ, हर कदम उलझ जाता है।

भावनाओं से न तुम, अब कामनाओं से बह रहे हो,
जिन्दगी के रास्ते में, बस ख्वाबों के ही साये में रह रहे हो।
इन ख्वाहिशों के सागर में, खुद को खो रहे हो।
समझो, जो तुम चाहो, वही तुम्हारी हकीकत बन जाती है,
लेकिन कभी-कभी, यह चाहत ही दुःख की असली वजह बन जाती है।

©नवनीत ठाकुर

#चाहत

13 Love

**"जनाज़े में शरीक होना भी जरूरी है, अंजाम-ए-सफर का असल चेहरा वहीं नज़र आएगा। रुख़्सत का मंजर है सच्चाई का आईना, कंधों पर उठता जिस्म, खाली हाथ जाएगा। उम्र भर 'मेरा-मेरा' का खेल खेला, पर सब यहीं रह जाना, कुछ भी संग ना ले जाएगा। कुछ अधूरी ख्वाहिशें, कुछ खामोश अफसाने, जिनके पीछे भागा, वो यहीं रह जाएंगे पुराने। साथ जाएगा तो बस किरदार का वो असर, जो रह जाएगा किसी दिल में बनकर सदा एक घर। यही है असल दौलत, यही है असल निशानी, बाकी सब सपना है, जिंदगी बस एक कहानी।"** ©नवनीत ठाकुर

#मोटिवेशनल #जनाजा  **"जनाज़े में शरीक होना भी जरूरी है,
अंजाम-ए-सफर का असल चेहरा वहीं नज़र आएगा।
रुख़्सत का मंजर है सच्चाई का आईना,
कंधों पर उठता जिस्म, खाली हाथ जाएगा।

उम्र भर 'मेरा-मेरा' का खेल खेला,
पर सब यहीं रह जाना, कुछ भी संग ना ले जाएगा।
कुछ अधूरी ख्वाहिशें, कुछ खामोश अफसाने,
जिनके पीछे भागा, वो यहीं रह जाएंगे पुराने।

साथ जाएगा तो बस किरदार का वो असर,
जो रह जाएगा किसी दिल में बनकर सदा एक घर।
यही है असल दौलत, यही है असल निशानी,
बाकी सब सपना है, जिंदगी बस एक कहानी।"**

©नवनीत ठाकुर

"इंसान में इंसानियत होती गर बाकी, मंदिर-मस्जिद की साजिशें होती शायद नाकाम।। पंडित भुला माला, नमाज़ी भुला ईमान। दिल से दिल जोड़ने का नाम होता मज़हब, खुदा मिलता हर दिल में, हर चेहरे में राम।।" ©नवनीत ठाकुर

#विचार  "इंसान में इंसानियत होती गर बाकी,
मंदिर-मस्जिद की साजिशें होती शायद नाकाम।।
पंडित भुला माला, नमाज़ी भुला ईमान।
दिल से दिल जोड़ने का नाम होता मज़हब,
खुदा मिलता हर दिल में, हर चेहरे में राम।।"

©नवनीत ठाकुर

# "इंसान में इंसानियत होती गर बाकी, मंदिर-मस्जिद की साजिशें होती शायद नाकाम। पंडित भुला माला, नमाज़ी भुला ईमान, दिल से दिल जोड़ने का नाम होता मज़हब, खुदा मिलता हर दिल में, हर चेहरे में राम।"

17 Love

आईने की तरह रिश्ते भी नाज़ुक होते हैं, फिर भी इन्हें संभालने में लोग चूकते हैं। झूठी खूबसूरती पर लोग सुकून में खोते हैं। जब तक सलामत थे, उनकी कद्र कहाँ थी, अब टूटे हैं तो दर्द के किस्से हर मोड़ पे रोते हैं। एक बार जो दरारें आ जाएं दिल के आईने में, फिर उन रिश्तों से लोग हमेशा दूर से गुजरते हैं। ©नवनीत ठाकुर

#शायरी #GoldenHour  आईने की तरह रिश्ते भी नाज़ुक होते हैं,
फिर भी इन्हें संभालने में लोग चूकते हैं।
झूठी खूबसूरती पर लोग सुकून में खोते हैं।
जब तक सलामत थे, उनकी कद्र कहाँ थी,
अब टूटे हैं तो दर्द के किस्से हर मोड़ पे रोते हैं।
एक बार जो दरारें आ जाएं दिल के आईने में,
फिर उन रिश्तों से लोग हमेशा दूर से गुजरते हैं।

©नवनीत ठाकुर

#GoldenHour शायरी लव

16 Love

जमीन पर आधिपत्य इंसान का, पशुओं को आसपास से दूर भगाए। हर जीव पर उसने डाला है बंधन, ये कैसी है जिद्द, ये किसका अधिकार है।। जहां पेड़ों की छांव थी कभी, अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी। मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया, ये कैसी रचना का निर्माण है।। नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने, पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है। प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र, बस खुद की चाहत का संसार है। क्या सच में यही मानव का आविष्कार है? फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है, सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है। बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है, उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है। हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है, किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है, इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।। हरियाली छूटी, जीवन रूठा, सुख की खोज में सब कुछ छूटा। जो संतुलन से भरी थी कभी, बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।। बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है। हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है? ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है? क्या यही मानवता का सच्चा आकार है? ©नवनीत ठाकुर

#प्रकृति #कविता  जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

12 Love

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