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Vishwas Pradhan

Vishwas Pradhan Lives in Varanasi, Uttar Pradesh, India

जिंदगी के समझ को शब्दों में पिरोकर, कुछ मिलने की उम्मीद में जो ना पाया उसे खोकर, कभी इश्क़ कभी सबक या तंज करता किरदार हूँ। कहानियां समेटकर दुनिया की, पन्नो पे लिखता मैं एक कलमकार हूँ।।

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दिन खत्म, रात गई, चौ-बीस बसंत बीत गए। शुष्क चाल चल रही,ये जिंदगी है राह में। १ मन की गति मध्यम,ख्यालों में शोर लिए, सपने पलायन कर रहें,हैं भोर के उस चाह में। २ आंखों के कोने से,नींद ने आवाज दी, पलकों को रोकूं,कहो कहीं पड़ाव है ? ३ चार कदम कहते-कहते मीलों दूर चल दिए, उम्र भर यही सितम या नियत में ठहराव है । ४ क्या कहूं कि ख्वाबों को पर अभी लगे नहीं, कालजयी रातों के जुगनू भी जगे नहीं। ५ किस्मत की काली बेल ऐसे लिपटी सपनों से , सींच रहा सिप सिप, फल अभी लगे नहीं।। ६ पांव है समर में पर,समय के भंवर में हूं मै, कुछ आंखे भीतर से कहकहा लगा रही। ७ खिड़कियों से झांकती है दुनिया की चकाचौंध, प्रेम,प्रीत,अर्थ सारे लोभ ये जगा रहीं।। ८ सवाल कभी फैसलों पे, कभी खुद के हाल पे नियति से नाराज़ होके हार से हताश मै। ९ बंद पड़े रास्तों पे घेरे खड़े अंधेरे तो, कदम मुड़े पीछे चला घर मैं कुछ तलाश में। १० चौखट पे पड़े पांव आंखे दो हंसती दिखी, चेहरे की झुर्रियों पे आस की एक चमक लिए। ११ कुर्ते की सिलवटें उस हाल की गवाह पर, सवाल न शिकन खड़े, अधरो पे वही दमक लिए।। १२ मन का विज्ञान बिना ज्ञान लिए जान लेती, कह रही ये शिकन कैसा तू अभी भी शान है। १३ कंधे जो झुक रहे समय के दाब झेल के,   कह रहे गया ही क्या अभी जितना जहान है।।१४ वो आंखे जो जीत की उम्मीद लिए बैठी हैं, तो कहो मन एक जोर क्यूं न फिर लगाऊं मैं |१५ वो पांव अभी भी चले रहें है हौसलों के हाथ भरे, अभी हूं खाली हाथ पर क्यूं खाली हाथ जाऊं मैं।१६  सृष्टि की रचना न ही नियति पे संदेह हमें, है पता कि फैसले पे उसका अधिकार है।१७ फिर कर्म से क्यूं हाथ पीछे, क्यूं थके समय से पहले। हार-जीत हिस्से में, सब हमे स्वीकार है ।।।१८ ©Vishwas Pradhan

#motivate #Jindagi #kavita #Hindi  दिन खत्म, रात गई, चौ-बीस बसंत बीत गए। शुष्क चाल चल रही,ये जिंदगी है राह में। १
मन की गति मध्यम,ख्यालों में शोर लिए, सपने पलायन कर रहें,हैं भोर के उस चाह में। २

आंखों के कोने से,नींद ने आवाज दी, पलकों को रोकूं,कहो कहीं पड़ाव है ? ३
चार कदम कहते-कहते मीलों दूर चल दिए, उम्र भर यही सितम या नियत में ठहराव है । ४

क्या कहूं कि ख्वाबों को पर अभी लगे नहीं, कालजयी रातों के जुगनू भी जगे नहीं। ५
किस्मत की काली बेल ऐसे लिपटी सपनों से , सींच रहा सिप सिप, फल अभी लगे नहीं।। ६

पांव है समर में पर,समय के भंवर में हूं मै, कुछ आंखे भीतर से कहकहा लगा रही। ७
खिड़कियों से झांकती है दुनिया की चकाचौंध, प्रेम,प्रीत,अर्थ सारे लोभ ये जगा रहीं।। ८

सवाल कभी फैसलों पे, कभी खुद के हाल पे नियति से नाराज़ होके हार से हताश मै। ९
बंद पड़े रास्तों पे घेरे खड़े अंधेरे तो, कदम मुड़े पीछे चला घर मैं कुछ तलाश में। १०

चौखट पे पड़े पांव आंखे दो हंसती दिखी, चेहरे की झुर्रियों पे आस की एक चमक लिए। ११
कुर्ते की सिलवटें उस हाल की गवाह पर, सवाल न शिकन खड़े, अधरो पे वही दमक लिए।। १२

मन का विज्ञान बिना ज्ञान लिए जान लेती, कह रही ये शिकन कैसा तू अभी भी शान है। १३
कंधे जो झुक रहे समय के दाब झेल के,   कह रहे गया ही क्या अभी जितना जहान है।।१४

वो आंखे जो जीत की उम्मीद लिए बैठी हैं, तो कहो मन एक जोर क्यूं न फिर लगाऊं मैं |१५
वो पांव अभी भी चले रहें है हौसलों के हाथ भरे, अभी हूं खाली हाथ पर क्यूं खाली हाथ जाऊं मैं।१६

 सृष्टि की रचना न ही नियति पे संदेह हमें, है पता कि फैसले पे उसका अधिकार है।१७
फिर कर्म से क्यूं हाथ पीछे, क्यूं थके समय से पहले। हार-जीत हिस्से में, सब हमे स्वीकार है ।।।१८

©Vishwas Pradhan

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13 Love

White उस चश्म को हम, आयतें-आफताब लिखते हैं। रुखसार को,  रोशन-ए-महताब लिखते है। इन ख्यालों में जिसकी तवज्जो है इतनी, उस भ्रम को हम हुस्न की किताब लिखते हैं। आंखों में डूबने को शबाब लिखते हैं । मयखाने की मल्लिका को शराब लिखते हैं। नासाज़ कर दी जिसने जवानी ये मेरी, उस नशे को हम दोपहरी-ख्वाब लिखते हैं।।२ इश्क एक-तरफा हो तो खराब लिखते हैं। शायरों को अक्सर, ग़में-मिजाज लिखते हैं। केवल जानकी वियोग का हिसाब रखने वाले, मोहन तड़पें तो, प्रेम लाजवाब लिखते हैं।।३ एक अरसे तक चाहा, जिसे आज लिखते हैं। महज़ शायरी नहीं, हम तल्ख़े-ताज़ लिखते हैं। खुदगर्ज होना हो भले दस्तूर जमाने का, आज भी अपने गीतों में, उसे ही साज़ लिखते हैं।।४ ©Vishwas Pradhan

#love_shayari #Jeevan #kavita #kahani  White  उस चश्म को हम, आयतें-आफताब लिखते हैं।
रुखसार को,  रोशन-ए-महताब लिखते है।
इन ख्यालों में जिसकी तवज्जो है इतनी,
उस भ्रम को हम हुस्न की किताब लिखते हैं।

आंखों में डूबने को शबाब लिखते हैं ।
मयखाने की मल्लिका को शराब लिखते हैं।
नासाज़ कर दी जिसने जवानी ये मेरी,
उस नशे को हम दोपहरी-ख्वाब लिखते हैं।।२

इश्क एक-तरफा हो तो खराब लिखते हैं।
शायरों को अक्सर, ग़में-मिजाज लिखते हैं।
केवल जानकी वियोग का हिसाब रखने वाले,
मोहन तड़पें तो, प्रेम लाजवाब लिखते हैं।।३

एक अरसे तक चाहा, जिसे आज लिखते हैं।
महज़ शायरी नहीं, हम तल्ख़े-ताज़ लिखते हैं।
खुदगर्ज होना हो भले दस्तूर जमाने का,
आज भी अपने गीतों में, उसे ही साज़ लिखते हैं।।४

©Vishwas Pradhan

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12 Love

White फख़्त ये आजमा लेना, भले दस्तूर जो भी हो। निहायत इश्क होगा तो, चांद बदनाम भी होगा।। बदलते मौसमों का एक कुनबा साथ है मेरे, फ़िदायीन रात जाने दो, मुबारक़ शाम भी होगा। मंजिल दूर जरा ख्वाबों की फेहरिस्त है लंबी, मुसाफ़िर आज हैं तो क्या, हमारा नाम भी होगा। मुद्दतों की तंगदस्ती से कुछ पल का ही रिश्ता है, मुश्किल आज है तो, कल सफ़र आसान भी होगा।। ©Vishwas Pradhan

#मोटिवेशनल #हिंदी #कविता #शायरी  White  फख़्त ये आजमा लेना, भले दस्तूर जो भी हो।
निहायत इश्क होगा तो, चांद बदनाम भी होगा।।

 बदलते मौसमों का एक कुनबा साथ है मेरे,
फ़िदायीन रात जाने दो, मुबारक़ शाम भी होगा।

मंजिल दूर जरा ख्वाबों की फेहरिस्त है लंबी,
मुसाफ़िर आज हैं तो क्या, हमारा नाम भी होगा।

मुद्दतों की तंगदस्ती से कुछ पल का ही रिश्ता है,
मुश्किल आज है तो, कल सफ़र आसान भी होगा।।

©Vishwas Pradhan

White ध्येय का चिंतन, कर्म-चयन, पूर्ण साधना, सही पथ सुझाव, हे पार्थ भले हम रथ पे हों, लड़ो युद्ध अगर हो खुद का चुनाव।। एक हार से किंचित मन क्यूं हो, वसुधा के पटल पर जाना हो जो। देवों का जीवन सहज नहीं, तुम तो फिर भी ,एक मानव हो।। चाहे दिखे कि आगे हार ही है, रथ के पहिए भले शिथिल पड़े। तुम लड़ो कि अंतिम युद्ध यही, हो अर्जुन या श्रीकृष्ण खड़े।। सब निहित भले हो जन्मों से,पर खुद को खुद लिखने वाला। सुनो पार्थ, रण-विजयी हुआ, अंतिम तक युद्ध लड़ने वाला।। ©Vishwas Pradhan

#Motivational  White ध्येय का चिंतन, कर्म-चयन,
पूर्ण साधना, सही पथ सुझाव,
हे पार्थ भले हम रथ पे हों,
लड़ो युद्ध अगर हो खुद का चुनाव।।

एक हार से किंचित मन क्यूं हो,
वसुधा के पटल पर जाना हो जो।
देवों का जीवन सहज नहीं,
तुम तो फिर भी ,एक मानव हो।।

चाहे दिखे कि आगे हार ही है,
रथ के पहिए भले शिथिल पड़े।
तुम लड़ो कि अंतिम युद्ध यही,
हो अर्जुन या श्रीकृष्ण खड़े।।

सब निहित भले हो जन्मों से,पर
खुद को खुद लिखने वाला।
सुनो पार्थ, रण-विजयी हुआ,
अंतिम तक युद्ध लड़ने वाला।।

©Vishwas Pradhan

#Motivational

14 Love

White एक प्रेम है पनपा पन्नो पे, तसवीर सिमट गई सांसो में। कुछ आस जगा अंतर्मन में, मन फिर उलझा उन बातों में।।१ एक चितवन सी काया खातिर,  ये आंख जगी फिर रातों में।  फिर से तारों से बात हुई,  कुछ ख्वाब सजे फिर आँखों में..।।२ नजरे चंचल कछ कहती हैं, होंठो पे हसी ही गहना है। चेहरा जैसा हो खिला चांद, श्रृंगार ने उसको पहना है।।३ इस सिथिल पडे तामस मन पर,  चल जैसा कोई शूल गया, चित अधीर हुआ वो ऐसे दिखी, तन करवट लेना भूल गया।।४ फिर हृदय ने छेड़ा मोह राग, धड़कन ने गाया गीत नया। सांसों ने छोड़ा साथ मेरा, मैं मुझसे बगावत करके गया।५ ये माना की है भ्रम ये मेरा, फिर भी मन पूर्ण समर्पित है। कविता के सारे अलंकार, रस-छंद सब तुमको अर्पित है।।६ मैं थमा हुआ कोई तट जैसे,  तुम लहरों सी बलखाती हो। सांसों का बहना थम जाता, जब तुम यादों में आती हो।७ मैं आधा बेसुर गीत कोई, तुम कोकिल कंठ-सी गाती हो। मैं चुप बस खुद को सुनता हूं, तुम सबको ग़ज़ल सुनाती हो।८ अगर ये सपने सच होते, मैं कहता तुम वो साथी हो। अवसित हुई जहां तलाश मेरी,  तुम प्रभु की वो तराशी हो।।९ मन भटका हुआ है घाटों पे, तुम राह दिखाती वासी हो। मैं बिखरा हुआं हूं गलियों सा, तुम मेरी सुंदर काशी हो-2।।९० ©Vishwas Pradhan

#love_shayari  White एक प्रेम है पनपा पन्नो पे,
तसवीर सिमट गई सांसो में।
कुछ आस जगा अंतर्मन में,
मन फिर उलझा उन बातों में।।१
एक चितवन सी काया खातिर,
 ये आंख जगी फिर रातों में।
 फिर से तारों से बात हुई,
 कुछ ख्वाब सजे फिर आँखों में..।।२

नजरे चंचल कछ कहती हैं,
होंठो पे हसी ही गहना है।
चेहरा जैसा हो खिला चांद,
श्रृंगार ने उसको पहना है।।३
इस सिथिल पडे तामस मन पर, 
चल जैसा कोई शूल गया,
चित अधीर हुआ वो ऐसे दिखी,
तन करवट लेना भूल गया।।४

फिर हृदय ने छेड़ा मोह राग,
धड़कन ने गाया गीत नया।
सांसों ने छोड़ा साथ मेरा,
मैं मुझसे बगावत करके गया।५
ये माना की है भ्रम ये मेरा,
फिर भी मन पूर्ण समर्पित है।
कविता के सारे अलंकार,
रस-छंद सब तुमको अर्पित है।।६

मैं थमा हुआ कोई तट जैसे, 
तुम लहरों सी बलखाती हो।
सांसों का बहना थम जाता,
जब तुम यादों में आती हो।७
मैं आधा बेसुर गीत कोई,
तुम कोकिल कंठ-सी गाती हो।
मैं चुप बस खुद को सुनता हूं,
तुम सबको ग़ज़ल सुनाती हो।८

अगर ये सपने सच होते,
मैं कहता तुम वो साथी हो।
अवसित हुई जहां तलाश मेरी, 
तुम प्रभु की वो तराशी हो।।९
मन भटका हुआ है घाटों पे,
तुम राह दिखाती वासी हो।
मैं बिखरा हुआं हूं गलियों सा,
तुम मेरी सुंदर काशी हो-2।।९०

©Vishwas Pradhan

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11 Love

श्रृष्टि में खुद प्रेम लिखा ,और शक्ति को भी स्वयं चुना , पर प्रेम को परिभाषित करने को, शिव भी वर्षो रुके रहें।। शक्ति ने प्रेम स्वीकार किया, जिसका शिव ने आधार दिया,  पर लिखा प्रेम पाने को भी,  शक्ति ने,वर्षो ताप सहे।। सहज नहीं है जीवन मिलना, मुश्किल है की प्रेम सरल हो। देवों ने भी किया समर्पण, फिर कैसे ये सहज हो नर को। ©Vishwas Pradhan

#premkavita #shivshakti  श्रृष्टि में खुद प्रेम लिखा ,और
शक्ति को भी स्वयं चुना , पर
प्रेम को परिभाषित करने को,
शिव भी वर्षो रुके रहें।।

शक्ति ने प्रेम स्वीकार किया,
जिसका शिव ने आधार दिया, 
पर लिखा प्रेम पाने को भी,
 शक्ति ने,वर्षो ताप सहे।।

सहज नहीं है जीवन मिलना,
मुश्किल है की प्रेम सरल हो।
देवों ने भी किया समर्पण,
फिर कैसे ये सहज हो नर को।

©Vishwas Pradhan
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