Vishwas Pradhan

Vishwas Pradhan Lives in Varanasi, Uttar Pradesh, India

जिंदगी के समझ को शब्दों में पिरोकर, कुछ मिलने की उम्मीद में जो ना पाया उसे खोकर, कभी इश्क़ कभी सबक या तंज करता किरदार हूँ। कहानियां समेटकर दुनिया की, पन्नो पे लिखता मैं एक कलमकार हूँ।।

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श्रृष्टि में खुद प्रेम लिखा ,और शक्ति को भी स्वयं चुना , पर प्रेम को परिभाषित करने को, शिव भी वर्षो रुके रहें।। शक्ति ने प्रेम स्वीकार किया, जिसका शिव ने आधार दिया,  पर लिखा प्रेम पाने को भी,  शक्ति ने,वर्षो ताप सहे।। सहज नहीं है जीवन मिलना, मुश्किल है की प्रेम सरल हो। देवों ने भी किया समर्पण, फिर कैसे ये सहज हो नर को। ©Vishwas Pradhan

#premkavita #shivshakti  श्रृष्टि में खुद प्रेम लिखा ,और
शक्ति को भी स्वयं चुना , पर
प्रेम को परिभाषित करने को,
शिव भी वर्षो रुके रहें।।

शक्ति ने प्रेम स्वीकार किया,
जिसका शिव ने आधार दिया, 
पर लिखा प्रेम पाने को भी,
 शक्ति ने,वर्षो ताप सहे।।

सहज नहीं है जीवन मिलना,
मुश्किल है की प्रेम सरल हो।
देवों ने भी किया समर्पण,
फिर कैसे ये सहज हो नर को।

©Vishwas Pradhan

White जब पहली बार प्रेम लिखा गया, मतलब था, दो जीवो का एक होना। क्योंकि श्रृष्टि का संचालन सुदृढ़ करना था। दो स्वच्छंद विचारो का जब मिलना होगा, प्रेम होगा, श्रृष्टि के क्रम में, निरंतर ये ही चक्र चलेगा। ना कहीं करूण-क्रदन ,ना ही वियोगित मन। यथावत चल रहा था, जैसा लिखा गया था। फिर प्रेम हुआ, साक्षात ईश्वर को हुआ। वो प्रथम जीवंत प्रेम था, अनंत तक चलने वाला, अखंड , मगर रचना के विरुद् होने वाला, यहां जप भी था और तप भी,   करूणा और वियोग भी। संताप में श्रृष्टि तक को भस्म करने वाला, यह पहला प्रेम था जो पूर्ण हुआ। ©Vishwas Pradhan

#Shivashakti #MyPoetry #Hindi  White जब पहली बार प्रेम लिखा गया,
मतलब था, दो जीवो का एक होना।
क्योंकि श्रृष्टि का संचालन सुदृढ़ करना था।

दो स्वच्छंद विचारो का जब मिलना होगा,
प्रेम होगा, श्रृष्टि के क्रम में, निरंतर ये ही चक्र चलेगा।

ना कहीं करूण-क्रदन ,ना ही वियोगित मन।
यथावत चल रहा था, जैसा लिखा गया था।

फिर प्रेम हुआ, साक्षात ईश्वर को हुआ।
वो प्रथम जीवंत प्रेम था, अनंत तक चलने वाला,

अखंड , मगर रचना के विरुद् होने वाला,
यहां जप भी था और तप भी, 
 करूणा और वियोग भी।
संताप में श्रृष्टि तक को भस्म करने वाला,
यह पहला प्रेम था जो पूर्ण हुआ।

©Vishwas Pradhan

भीड़ में जयघोष का सैलाब लेके आया था, लाज़िमी है कि वो लड़का ख़्वाब लेके आया था। ये ज़मीं फिरदौस कहता, ये वतन आजाद है,  वो महज लड़का आजादी का, इंकलाब लेके आया था।। ©Vishwas Pradhan

#bhagatsingh #Deshbhakti #bharatsher  भीड़ में जयघोष का सैलाब लेके आया था,
लाज़िमी है कि वो लड़का ख़्वाब लेके आया था।
ये ज़मीं फिरदौस कहता, ये वतन आजाद है,
 वो महज लड़का आजादी का, इंकलाब लेके आया था।।

©Vishwas Pradhan

White तुम मिले, मन मिला, सुकून जैसे ठहर गया, की गांव का वो लड़का, जैसे अभी शहर गया। खोजता भटक रहा , अधूरी थी तलाश अभी , आंखो को थकाते, कितनी रातों का पहर गया। तुम मिली तो जैसे लगा, ख्वाबों को कुछ बल मिला, थके हुए रातों को, भोर का कुछ पल मिला। तलाश था की मेरे भी हिस्से में जरा प्यार हो। तुमसे मिलके लगा जैसे, गांव से मैं कल मिला।। खालीपन से लदा मुझमें, एक हिस्सा अब भी है।  बिखरी हुई कहानियों का ,एक किस्सा अब भी है। नसीब से नाराज़ था, किस्से में प्रेम क्यूं नहीं? पाया तुम्हे पता चला, हिस्से में प्रेम अब भी है।। अगर कबूल हो तुम्हे, तलाश को आयाम दूं? प्रेम के इस किस्से के, किरदार को इक नाम दूंl मैं राही अभी भटका हुआ, तलाश है एक मोड़ की। मंजूर है अगर तुम्हे, इस सफर को एक अंजाम दूं? ©Vishwas Pradhan

#love_shayari  White तुम मिले, मन मिला, सुकून जैसे ठहर गया,
की गांव का वो लड़का, जैसे अभी शहर गया।
खोजता भटक रहा , अधूरी थी तलाश अभी ,
आंखो को थकाते, कितनी रातों का पहर गया।


तुम मिली तो जैसे लगा, ख्वाबों को कुछ बल मिला,
थके हुए रातों को, भोर का कुछ पल मिला।
तलाश था की मेरे भी हिस्से में जरा प्यार हो।
तुमसे मिलके लगा जैसे, गांव से मैं कल मिला।।


खालीपन से लदा मुझमें, एक हिस्सा अब भी है। 
बिखरी हुई कहानियों का ,एक किस्सा अब भी है।
नसीब से नाराज़ था, किस्से में प्रेम क्यूं नहीं?
पाया तुम्हे पता चला, हिस्से में प्रेम अब भी है।।


अगर कबूल हो तुम्हे, तलाश को आयाम दूं?
प्रेम के इस किस्से के, किरदार को इक नाम दूंl
मैं राही अभी भटका हुआ, तलाश है एक मोड़ की।
मंजूर है अगर तुम्हे, इस सफर को एक अंजाम दूं?

©Vishwas Pradhan

#love_shayari love poetry in hindi

13 Love

White जब तक समय है शेष मुझमें रुक जाए सब, मैं चलता रहूंगा। दौर चाहे बदले समय का बदले सब, मैं ढलता रहूंगा। कुछ जीतने की दौड़ में,  किस्मत भले ना संग हो।  कुछ सीखने की होड़ में  मैं खुद से ही लड़ता रहूंगा।। सपनो की कई डालियां , है पनपती रोज मुझमें। पर एक शाखा है की जिसका शय सुकून देता मुझे। रोज गिरता, रोज चलता,  जब कभी थक जाता मैं। कुछ और पल, फिर ख्वाब पूरे, ये जुनून देता मुझे। सपनो के उस शाख को   जीवित रखूंगा जीत तक।  पर,जीत ना पाया अगर उस भाव को  सहेजकर जिंदा रखूंगा ख्वाब को , रास्तों के ठोकरों से , मैं खुद ही संभालता चलूंगा। जब तक समय है शेष मुझमें कुछ पाने तक चलता रहूंगा।।। ©Vishwas Pradhan

 White जब तक समय है शेष मुझमें
रुक जाए सब, मैं चलता रहूंगा।

दौर चाहे बदले समय का
बदले सब, मैं ढलता रहूंगा।

कुछ जीतने की दौड़ में,
 किस्मत भले ना संग हो।

 कुछ सीखने की होड़ में 
मैं खुद से ही लड़ता रहूंगा।।

सपनो की कई डालियां ,
है पनपती रोज मुझमें।

पर एक शाखा है की जिसका
शय सुकून देता मुझे।

रोज गिरता, रोज चलता,
 जब कभी थक जाता मैं।

कुछ और पल, फिर ख्वाब पूरे,
ये जुनून देता मुझे।

सपनो के उस शाख को 
 जीवित रखूंगा जीत तक।

 पर,जीत ना पाया अगर
उस भाव को  सहेजकर

जिंदा रखूंगा ख्वाब को ,
रास्तों के ठोकरों से ,
मैं खुद ही संभालता चलूंगा।

जब तक समय है शेष मुझमें
कुछ पाने तक चलता रहूंगा।।।

©Vishwas Pradhan

#motivational #mypoetry #hindipoetry #mondaymotivation

12 Love

White किसी सपने खातिर भागे क्या, उसे जीने खातिर जागे क्या, जिस जीवन का भरते हो दंभ उसे पाने खातिर त्यागे क्या? क्या लड़ा कभी खुद से तुमने, तुम शर्त कभी कोई हारे क्या, क्या चले हो ऐसे राह कभी, जहां पता नहीं हो आगे क्या उस मंजिल तक जाने खातिर, जीवन से मौके मांगे क्या, जिस जीवन का भरते हो दंभ, उसे पाने खातिर त्यागे क्या?? विरले ही हुए हैं वीर यहां, जो रण में कभी न हारे हों। पर संघर्षों में तपकर ही, वो साधक से वीर बने। हर सपने का मोल कोई, सबको ही चुकाना पड़ता है। पर जिनके सपने असली हों, बस वही अंत तक चलता है। गिरकर चलना खुद सीखे क्या, कहो सहा तंज कोई तीखे क्या, जो लड़ते रहे अबतक खुद से तो, कहो जंग कोई जीते क्या। इस जीवन के तपोवन में, हर छड़ लड़ना है युद्ध नया। हारा है वही जो तपा नहीं, जो सीखें दाव वो जीत गए। असफलता के शिखर पर ही, सबने लिखा है जीत गान,  घूमता है निरंतर कर्म रथ, जो किए कर्म, वो हुए महान।। ©Vishwas Pradhan

#MondayMotivation #GoodMorning  White  किसी सपने खातिर भागे क्या,
उसे जीने खातिर जागे क्या,
जिस जीवन का भरते हो दंभ
उसे पाने खातिर त्यागे क्या?

क्या लड़ा कभी खुद से तुमने,
तुम शर्त कभी कोई हारे क्या,
क्या चले हो ऐसे राह कभी,
जहां पता नहीं हो आगे क्या

उस मंजिल तक जाने खातिर,
जीवन से मौके मांगे क्या,
जिस जीवन का भरते हो दंभ,
उसे पाने खातिर त्यागे क्या??

विरले ही हुए हैं वीर यहां,
जो रण में कभी न हारे हों।
पर संघर्षों में तपकर ही,
वो साधक से वीर बने।

हर सपने का मोल कोई,
सबको ही चुकाना पड़ता है।
पर जिनके सपने असली हों,
बस वही अंत तक चलता है।

गिरकर चलना खुद सीखे क्या,
कहो सहा तंज कोई तीखे क्या,
जो लड़ते रहे अबतक खुद से तो,
कहो जंग कोई जीते क्या।

इस जीवन के तपोवन में,
हर छड़ लड़ना है युद्ध नया।
हारा है वही जो तपा नहीं,
जो सीखें दाव वो जीत गए।

असफलता के शिखर पर ही,
सबने लिखा है जीत गान, 
घूमता है निरंतर कर्म रथ,
जो किए कर्म, वो हुए महान।।

©Vishwas Pradhan

#GoodMorning #MondayMotivation hindi poetry

14 Love

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