White ये शाम की सिन्दूरी प्रभा है
या भोर का ऊषा अभिनंदन
प्रकृति का कर रहा आलिंगन
चंद्र धूमिल हो रहा
किरणों के घूंघट रश्मियों से
ऋ्त्विजा ऊठ रही है
उर्विजा के निमंत्रण से
अभिनंदन है वंदन है
हे रघुनंदन तुम्हें समर्पित,अर्पित
अक्षत चन्दन और श्रीफल से अतिरंजित थाल
सत्य सनातन सुन्दर तिलक
से करती हूं तुम्हारा शृंगार
है मेरा तुझसे अभिसार
जग ,छोड़ मैं हुई निस्सार
मोह और माया की यायावरी
से जागी मै़ विगत विभावरी
हे राम मेरे घनश्याम मेरे
शिव में भी तू दिखे
कृष्ण में भी तू दिखे
अचरज तो तब भये
जब राधा में भी तू ही दिखे
चैतन्य , परात्परा,चिदानंद
जाग जरा सर्वेश्वरी
चितवन खोल ,देख मुझे
हे रम्या राधिका मेरी
चरणों में तेरी ,साधिका खड़ी
ले न अब और परीक्षा मेरी
विगत विभावरी से जाग रही
उनींदी अंखियों में स्वप्न कयी
कर दे सपने साकार मेरी
चरणों की रज पा सकूं
इक बार तो तेरे नयनों में
कृष्णा के दर्शन प्राप्त कर सकूं।
©Aditi Chouhan
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