लफ्जों में गुफ्तगू करना अब मुझे अच्छा नहीं लगता।
अब वो मेरा अपना मुझे सच्चा नहीं लगता ।
क्या हो अगर मैं उसकी बातों पे हामी भर लु
मुझे उसका हर झूठ अब अच्छा नहीं लगता।
तु खुश है इन जुदाइयों में, ये साथ मुझे जिन्दगी भर नहीं लगता।
चुप हूँ तेरी खामोशियों पे, अब तेरे खोने का डर नहीं लगता।
मिला होगा कोई हमसे अच्छा, हसीं ,दिलदार आपको
फिर क्या हुआ, अब भी हमें कोई आपका एक दर नहीं लगता।
जिन्दगी के कुछ नये उसूलों में आपका ये ऊसूल भी जोड़ देंगे।
खफा महोब्बत का रुख बेवफा से जोड़ देंगे।
आपकी तरहा अब हमें भी कुछ नहीं लगता हमारे दरमियाँ
वो कसम ताउम्र निभाने की थी ,वरना ये रिश्ता हम भी एक पल में तोड़ देंगे।
कुछ तो होता है महोब्बत जैसा इस जहां मे, वरना माँ को खुदा बनाता नहीं।
शायद इसांन की कमी होती है इसांन ढुढने में, जिनमें महोब्बत होती नहीं।
सब सही है अगर बन्दे तेरी रूह पाक है ये तन तो किसी का नहीं।
सब कुछ इस जहां में देखा है उतना मत सोच इतनी अभी रघु की बीती नहीं।
©Raghuveer Sou
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