(एक टुकड़ा आसमान का)
हैं जमीन पर एक टुकड़ा आसमान का,
जो कुछ पड़ता हैं, कुछ लिखता हैं ।
जो कुछ पाता हैं, कुछ खोता हैं,
जो कभी हंसता हैं, तो कभी रोता हैं ।।
जो कभी कहकर भी नहीं कह पाता हैं,
जो सदा अपनों में ही मुस्कराता हैं ।
हैं एक टुकड़ा आसमान का,
जो अपनों को भूल नहीं पाता हैं ।।
©kumar Badri
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