White शीर्षक-आखिर तुम क्यूँ आये।
डरी हुई मेरी आँखों को फिर सपने क्यूँ दिखलाए
सोचती हूँ बस यहीं की आखिर तुम क्यूँ आये।
तुमको जबसे जाना मैंने तलाश ही मेरी रुक गयी।
मेरी ख्वाब के तुम हकीकत थे इसलिए शायद झुक गयी।
किरदार जो कल तक दिल में था वहाँ आज तुम्हारी सूरत है।
पूजती थी जिसे आदर्श मानकर कर वहाँ आज तुम्हारी मूरत है।
अंजान से पहचान बनी फिर अजनबी क्यूँ कहलाये।
सोचती हूँ बस यहीं की आखिर तुम क्यूँ आये।
यूँ ही सोचते सोचते फिर ख़्याल आता है
अच्छा हुआ या बुरा ये सवाल आता है
चाहत ना सही पर राहत बन कर आये थे
दर्द से दर्द का इलाज़ करने दूसरी आहत बन कर आये थे
मुझको मुझसे मिलाये,
अच्छाई की पहचान कराए,
और मजबूत मूझे बनाए,
एक मीठा एहसास दिलाए,
जिंदगी कितनी खूबसूरत है तुम ही तो सिखलाए,
ठहराव मुझे शायद देना था इसलिए तुम आये।
©priti dwivedi
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