White "बचपन की यादें"
याद आ रही है वो बचपन,
जहाँ न कोई अपना, न कोई पराया,
सब एक जैसे थे,
न कोई झूठ, न कोई छलावा।
वो दिन जब दुनिया लगती थी प्यारी,
ना थे बड़े, ना थी कोई जिम्मेदारी,
हर खुशी थी छोटी, पर सच्ची,
हर हंसी थी मासूम, पर सजीव भारी।
सच से अंजान थे, झूठ से बेखबर,
ख्वाबों की दुनिया में थे बेफिकर,
अब जब बड़े हुए, जाना हकीकत,
हर चेहरा यहाँ, बस है एक नक़ाब भर।
काश लौट पाते उन गलियों में,
जहाँ थी मिट्टी की सौंधी महक,
जहाँ बारिश में कागज की कश्ती थी,
जहाँ दिलों में थी सच्ची चमक।
- खो गया वो मासूम बचपन,
हकीकत के साए में कहीं दूर बहुत दूर...
©SALONI TIWARI
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