फुल नहीं खिलते यहाँ जलते हैं
फुल से मासूम समशानों में
तुही बता कैसे आएँगे अल्फ़ाज
फिर बेजुबानों में
मैं ढुँडता मेरी मिट्टी यहीं बाजारों में
वो जान नन्ही सी हसती है
कभी दर्द उठाए कभी चिखकर कहती है
नींद बता क्या होती है
भुख बता क्या होती है
क्या मा भी ऐसे रोती है
मेरा दफन बचपन हो रहा
मेरा भटकता यौवन है
कहाँ कहाँ ढुँडू मैं क्या यहीं जीवन है
ऐसे ही क्या बंद बंद से
उठते गिरते लडखडाते पापा मिले मिट्टी में
वो नन्ही सी जान पुछे ......
..................
........... आँसूओं को मिलना हैं मिट्टी मे़
©Balasaheb Chikate
नन्ही सी जान पुछे