वक़्त भी क्या-क्या रंग दिखलाता है! जीते जी इं | हिंदी Shayari

"वक़्त भी क्या-क्या रंग दिखलाता है! जीते जी इंसान रहने को घर, महल बनता है! फिर उस पर इतराता है, आखिर में मर कर ख़ाक हो जाता है!! ©Deepak Kumar 'Deep'"

 वक़्त भी क्या-क्या 
रंग  दिखलाता  है!
जीते  जी  इंसान 
रहने को घर, 
महल बनता  है!
फिर  उस  पर  इतराता  है,
आखिर में  मर कर 
ख़ाक  हो जाता है!!

©Deepak Kumar 'Deep'

वक़्त भी क्या-क्या रंग दिखलाता है! जीते जी इंसान रहने को घर, महल बनता है! फिर उस पर इतराता है, आखिर में मर कर ख़ाक हो जाता है!! ©Deepak Kumar 'Deep'

#khak

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