White गुफ़्तगू थी जिनसे, अब खामोशियाँ हैं बाकी, स | हिंदी शायरी

"White गुफ़्तगू थी जिनसे, अब खामोशियाँ हैं बाकी, साथ जो चलते थे, वो कारवां ठिकाने गए। नक़ाबों के पीछे छुपी थी जो असलियत, मगर इतना तो हुआ, कुछ चेहरे पहचानने गए। इक हल्की सी लहर ने सारा दरिया हिला दिया, वक्त की शिद्दत से कुछ अरमाँ तक उड़ने गए। जो साथ थे कभी, अब दिलों में दूरियाँ बन गईं, लेकिन उन दूरियों से कुछ रिश्ते नया रंग लेने गए। अल्फाज़ वो जो कभी मुस्कान से बयाँ होते थे, वो अब चुप्पियों में छुप कर रह जाने गए। ©नवनीत ठाकुर"

 White  गुफ़्तगू थी जिनसे, अब खामोशियाँ हैं बाकी,
साथ जो चलते थे, वो कारवां ठिकाने गए।

नक़ाबों के पीछे छुपी थी जो असलियत,
मगर इतना तो हुआ, कुछ चेहरे पहचानने गए।

इक हल्की सी लहर ने सारा दरिया हिला दिया,
वक्त की शिद्दत से कुछ अरमाँ तक उड़ने गए।

जो साथ थे कभी, अब दिलों में दूरियाँ बन गईं,
लेकिन उन दूरियों से कुछ रिश्ते नया रंग लेने गए।

अल्फाज़ वो जो कभी मुस्कान से बयाँ होते थे,
वो अब चुप्पियों में छुप कर रह जाने गए।

©नवनीत ठाकुर

White गुफ़्तगू थी जिनसे, अब खामोशियाँ हैं बाकी, साथ जो चलते थे, वो कारवां ठिकाने गए। नक़ाबों के पीछे छुपी थी जो असलियत, मगर इतना तो हुआ, कुछ चेहरे पहचानने गए। इक हल्की सी लहर ने सारा दरिया हिला दिया, वक्त की शिद्दत से कुछ अरमाँ तक उड़ने गए। जो साथ थे कभी, अब दिलों में दूरियाँ बन गईं, लेकिन उन दूरियों से कुछ रिश्ते नया रंग लेने गए। अल्फाज़ वो जो कभी मुस्कान से बयाँ होते थे, वो अब चुप्पियों में छुप कर रह जाने गए। ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर
गुफ़्तगू थी जिनसे, अब खामोशियाँ हैं बाकी,
साथ जो चलते थे, वो कारवां ठिकाने गए।

नक़ाबों के पीछे छुपी थी जो असलियत,
मगर इतना तो हुआ, कुछ चेहरे पहचानने गए।

इक हल्की सी लहर ने सारा दरिया हिला दिया,

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