रस्ता और गाँव गांव की पगडंडियों से गुजर कर,मीलो का

"रस्ता और गाँव गांव की पगडंडियों से गुजर कर,मीलो का सफर कर,आता था एक रस्ता। पीठ पर लादे बस्ते का बोझ,करते अठखेलियां,तोड़ते जंगली जलेबी,और जेबों में भरते बेर,फेंकते जाते गुठलियां। कहीं रुकते, ढूढते ठोर बैठने के लिए छांव। फिर मिलता बहि रस्ता,बही गांव।।"

 रस्ता और गाँव गांव की पगडंडियों से गुजर कर,मीलो का सफर कर,आता था एक रस्ता।
पीठ पर लादे बस्ते का बोझ,करते अठखेलियां,तोड़ते जंगली जलेबी,और जेबों में भरते बेर,फेंकते जाते गुठलियां।
कहीं रुकते, ढूढते ठोर बैठने के लिए छांव।
फिर मिलता बहि रस्ता,बही गांव।।

रस्ता और गाँव गांव की पगडंडियों से गुजर कर,मीलो का सफर कर,आता था एक रस्ता। पीठ पर लादे बस्ते का बोझ,करते अठखेलियां,तोड़ते जंगली जलेबी,और जेबों में भरते बेर,फेंकते जाते गुठलियां। कहीं रुकते, ढूढते ठोर बैठने के लिए छांव। फिर मिलता बहि रस्ता,बही गांव।।

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