खुले आसमान से पूछो"
बांहों की परिधि में सिमट कर, जिस
उष्णता का अनुभव, करती हो धड़कनों में।
स्पर्श की तृप्ति का है आनंद, जिसे त्याग
ने का मन न करें, उसे निष्पाप प्रेम कहते हैं।
यही है सृष्टि का अमर प्रेम, टकटकी
लगाए देखता रहता है धरती को आसमान।
उन्मुक्त हवाओं में, कितने असीम सुख
की बहती है धारा,खुले आसमान से पूछो कोई।
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©Anuj Ray
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