कैसे बिगड़े मिरे हालात न मालूम मुझे
वक़्त ने क्या किए ज़ुल्मात न मालूम मुझे
बिखरे रिश्ते मिरे क्यूँ काँच के पैकर जैसे
दरमियाँ क्या हुए ख़दशात न मालूम मुझे
मैं हूँ खोई हुई माज़ी की किन्हीं यादों में
क्या अभी गुज़रे हैं लम्हात न मालूम मुझे
साथ तन्हाई है औ' ग़म की फ़रावानी है
कैसे कटते हैं ये दिन-रात न मालूम मुझे
उसको चाहा ही नहीं,मैंने परस्तिश'की है
वस्ल की होती है क्या रात न मालूम मुझे
©Parastish
पैकर= आकृति/body, figure
ख़दशात= शंकाएं/ doubts
माज़ी= अतीत/past
फ़रावानी= अधिकता/abundance,plenty
परस्तिश= इबादत,पूजा/worship
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