जहाँ कामगारों का शोषण हो,
जहाँ चाटुकारों का पोषण हो।
जहाँ दिखती सच्चाई बतानी पड़े,
जहाँ बहरों से ज़ुबान लड़ानी पड़े।
जहाँ संगठन नहीं; वो स्वयं बड़े हैं,
जहाँ नियम नहीं परंतु तेवर कड़े हैं।
जहाँ बेबस गरीबी बस घिघयाती है,
जहाँ अमीरी लाचारों पे चिल्लाती है।
वहाँ क्या समाज का सुधार हो सकता है?
वहाँ तो सिस्टम सिर्फ बीमार हो सकता है।
©एस पी "हुड्डन"
#बीमार_सिस्टम