White गाँव के ओ गली, जवन छूट गइल, मन के कोना में, | हिंदी कविता

"White गाँव के ओ गली, जवन छूट गइल, मन के कोना में, कहीं लुट गइल। पिआसल पनिहार, कुवा बोलावत, सपना के डेरा, कहीं टूट गइल। खलिहान के गाना, अब ना सुनाला, ओ बिसरे सुरवा, कहे छूट गइल। माटी के खुशबू, जियरा जुड़ावे, समय के संग-संग, कहीं रूठ गइल। अमराई के छांव, जियरा सहलावे, मगर उ बहार, अब तो रूठ गइल। चउपाल के बात, जे मन हरसावे, शहर के होड़ में, पीछे कहीं छूट गइल। बचपन के किस्सा, पकेला सहेजे, अधूरा सनेह, कहीं टूट गइल। राजीव ©samandar Speaks"

 White गाँव के ओ गली, जवन छूट गइल,
मन के कोना में, कहीं लुट गइल।

पिआसल पनिहार, कुवा बोलावत,
सपना के डेरा, कहीं टूट गइल।

खलिहान के गाना, अब ना सुनाला,
ओ बिसरे सुरवा, कहे छूट गइल।

माटी के खुशबू, जियरा जुड़ावे,
समय के संग-संग, कहीं रूठ गइल।

अमराई के छांव, जियरा सहलावे,
मगर उ बहार, अब तो रूठ गइल।

चउपाल के बात, जे मन हरसावे,
शहर के होड़ में, पीछे कहीं छूट गइल।

बचपन के किस्सा, पकेला सहेजे,
अधूरा सनेह, कहीं टूट गइल।
राजीव

©samandar Speaks

White गाँव के ओ गली, जवन छूट गइल, मन के कोना में, कहीं लुट गइल। पिआसल पनिहार, कुवा बोलावत, सपना के डेरा, कहीं टूट गइल। खलिहान के गाना, अब ना सुनाला, ओ बिसरे सुरवा, कहे छूट गइल। माटी के खुशबू, जियरा जुड़ावे, समय के संग-संग, कहीं रूठ गइल। अमराई के छांव, जियरा सहलावे, मगर उ बहार, अब तो रूठ गइल। चउपाल के बात, जे मन हरसावे, शहर के होड़ में, पीछे कहीं छूट गइल। बचपन के किस्सा, पकेला सहेजे, अधूरा सनेह, कहीं टूट गइल। राजीव ©samandar Speaks

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