प्रेत पर सवार हो वो नरभक्षी के स्पर्श को झेलती छ | हिंदी Poetry

"प्रेत पर सवार हो वो नरभक्षी के स्पर्श को झेलती छीर लगा दी अंग - अंग को मधुरसपान से वो खेलती तृप्त हो गई काया शैतान की अमृत अंग की जो बिखेरती नमन है हे! जगत प्रिय जग तवायफ़ के नाम जिसे बोलती ©चाँदनी"

 प्रेत पर सवार हो
वो नरभक्षी के स्पर्श को झेलती


छीर लगा दी अंग - अंग को
मधुरसपान से वो खेलती


तृप्त हो गई काया शैतान की
अमृत अंग की जो बिखेरती


नमन है हे! जगत प्रिय
जग तवायफ़ के नाम जिसे बोलती

©चाँदनी

प्रेत पर सवार हो वो नरभक्षी के स्पर्श को झेलती छीर लगा दी अंग - अंग को मधुरसपान से वो खेलती तृप्त हो गई काया शैतान की अमृत अंग की जो बिखेरती नमन है हे! जगत प्रिय जग तवायफ़ के नाम जिसे बोलती ©चाँदनी

#lalishq

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