मेरे रोम रोम में रण होगा
वो आज नहीं हर क्षण होगा
मैं जीवित हूँ साहस बल पर
तो युद्ध मेरे कण कण होगा !
ये कैसी विपदा आन पड़ी
जो मुझको ही भयभीत करे
मैं हार मान माथा टेकूं
और वो माथे पर नृत्य करे !
मैं नहीं हूं इतना कायर कि
मैं स्वयं समर्पण कर दूंगा
मैं लडूंगा अपने शत्रु से
और शीश को अर्पण कर दूंगा ।
मैं वीर धरा का वासी हूं
और लहू मेरी बलिदानी है
नेत्रों में मेरी क्रान्ति दिखे
इतनी पहचान बतानी है !
©Abeer Singh
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