"भटकना" और "भटकाना"
अज्ञानता के कारण इंसान भटकता है।
इसके विपरीत ज्ञानी होकर
दूसरों की बातों में आकर
शक, या आरोपी किसी को मानना,
भटकाना कहलाता है।
भटकाने वाला व्यक्ति शातिर होता है।
हमेशा सही को गलत दिखता है।
क्योंकि "ज्ञानी" का ध्यान
ग़लत करने वाले पर नहीं जाय।
"ज्ञानी" बार बार सही चीजों की
जाँच करता रहे।
ग़लत चीज़ जॉच से अछूता रह जाय।
आवेदक क्यों ना मूर्ख हो
दोनों पक्षों का वकील ज्ञानी होता है
लेकिन जज साहब फैसला
सिर्फ सुनकर नहीं सबूत के आधार पर देते हैं।
घर, समाज या कोई ऑफिस हो
यदि जिम्मेदारी स्वयं पर हो
तो "जज साहब" की भूमिका याद रखें।
©suman singh rajpoot
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