बिखरी हुई ज़िन्दगी, समेटने चली हूं। हां, मैं हालात | हिंदी कविता

"बिखरी हुई ज़िन्दगी, समेटने चली हूं। हां, मैं हालातों को, सुधारने चली हूं। कोई मेरे साथ, होगा या नहीं, पता नहीं, पर मैं तारों से लड़कर, अपनी किस्मत बदलने चली हूं। ©Neema Pawal"

 बिखरी हुई ज़िन्दगी,
समेटने चली हूं।
हां, मैं हालातों को,
सुधारने चली हूं।
कोई मेरे साथ,
होगा या नहीं,
पता नहीं,
पर मैं तारों से लड़कर,
अपनी किस्मत बदलने चली हूं।

©Neema Pawal

बिखरी हुई ज़िन्दगी, समेटने चली हूं। हां, मैं हालातों को, सुधारने चली हूं। कोई मेरे साथ, होगा या नहीं, पता नहीं, पर मैं तारों से लड़कर, अपनी किस्मत बदलने चली हूं। ©Neema Pawal

#Raat

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