✍️आज की डायरी✍️ 😞दिखावा... 😞 क | हिंदी कविता

"✍️आज की डायरी✍️ 😞दिखावा... 😞 कहीं सियासत हो रही है कहीं बस छलावा है । बेटी बचाओ का आंदोलन तो बस दिखावा है ।। मानवता के मूल्य दिखाई देते ही नहीं किसी में । राक्षसी प्रवृत्ति में केवल संतो का पहनावा है ।। भुला देते हैं हर मर्यादा मनोविकृति की वजह से । आवरण सभ्य होने का तो इनका बस दिखावा है ।। पँहुच जाते हैं जब तिहाड़ तो सत्य का ज्ञान होता है । बातें ऐसे निकलती है तब जैसे बहुत पछतावा है ।। दामन को बचाना है तो खुद में मजबूती लाना होगा । ये वो ज़माना है जहाँ अपनों में भी इक छलावा है ।। ✍️नीरज✍️ ©डॉ राघवेन्द्र"

 ✍️आज की डायरी✍️

                  😞दिखावा... 😞

कहीं सियासत हो रही है कहीं बस छलावा है । 
बेटी बचाओ का आंदोलन तो बस दिखावा है ।। 

मानवता के मूल्य दिखाई देते ही नहीं किसी में । 
राक्षसी प्रवृत्ति में केवल संतो का पहनावा है ।।

भुला देते हैं हर मर्यादा मनोविकृति की वजह से । 
आवरण सभ्य होने का तो इनका बस दिखावा है ।।

पँहुच जाते हैं जब तिहाड़ तो सत्य का ज्ञान होता है । 
बातें ऐसे निकलती है तब जैसे बहुत पछतावा है ।।

दामन को बचाना है तो खुद में मजबूती लाना होगा । 
ये वो ज़माना है जहाँ अपनों में भी इक छलावा है ।।

✍️नीरज✍️

©डॉ राघवेन्द्र

✍️आज की डायरी✍️ 😞दिखावा... 😞 कहीं सियासत हो रही है कहीं बस छलावा है । बेटी बचाओ का आंदोलन तो बस दिखावा है ।। मानवता के मूल्य दिखाई देते ही नहीं किसी में । राक्षसी प्रवृत्ति में केवल संतो का पहनावा है ।। भुला देते हैं हर मर्यादा मनोविकृति की वजह से । आवरण सभ्य होने का तो इनका बस दिखावा है ।। पँहुच जाते हैं जब तिहाड़ तो सत्य का ज्ञान होता है । बातें ऐसे निकलती है तब जैसे बहुत पछतावा है ।। दामन को बचाना है तो खुद में मजबूती लाना होगा । ये वो ज़माना है जहाँ अपनों में भी इक छलावा है ।। ✍️नीरज✍️ ©डॉ राघवेन्द्र

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