"कुल चार प्रेमपत्र थे,
जो अब पीले पड़ चुके हैं,
एक गुलाब एक गेंदा दो गुलमोहर
पन्नों के बीच में सड़े पड़े हैं,
यादें बेहद धुंधली सी है
चेहरा भूलने-भूलने को है,
लिखावट में इश्क़ नदारद है
स्याही पर विरह भारी है.
उसने शुरू में 'प्रिय' लिखा था,
आज मैं उसे कितना प्रिय हूँ,
उसने ख़त्म 'तुम्हारा' से किया
आज वह कितनी मेरी बची है?
क्या मैं वे प्रेमपत्र फाड़ दूँ
या जलाकर राख कर दूँ
या छोड़ दूँ उन्हें जस का तस
समय की दीमक के हवाले...?
🙃🙃
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©एक अजनबी
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