White लो आ गया दिसम्बर, दरख़्तों से आ लिपटा कुहासा, | हिंदी शायरी

"White लो आ गया दिसम्बर, दरख़्तों से आ लिपटा कुहासा, ठण्डी हवाएं यादों की चली, और सिहर गया मैं भी जरा सा। पंछियों की तरह गई, यादें चहक चहक और दिल में गर्माहट भर गई, गर्म कॉफ़ी की महक, उम्रों से क़ैद थीं खुशबुएँ, यादों के तहखाने में, क़ायनात बहक उठी है, दरवाजों के खुल जाने से। जादू सा चल गया, कितना कुछ बदल गया , दिसम्बर के आ जाने से। -माधव अवाना लो आ गया दिसम्बर। लो आ गया दिसम्बर।। ©Madhav Awana"

 White लो आ गया दिसम्बर,
दरख़्तों से आ लिपटा कुहासा,
ठण्डी हवाएं यादों की चली,
और सिहर गया मैं भी जरा सा।
पंछियों की तरह गई,
यादें चहक चहक
और दिल में गर्माहट भर गई,
गर्म कॉफ़ी की महक,
उम्रों से क़ैद थीं खुशबुएँ,
यादों के तहखाने में,
क़ायनात बहक उठी है,
दरवाजों के खुल जाने से।
जादू सा चल गया,
कितना कुछ बदल गया ,
दिसम्बर के आ जाने से।
-माधव अवाना 
लो आ गया दिसम्बर।
लो आ गया दिसम्बर।।

©Madhav Awana

White लो आ गया दिसम्बर, दरख़्तों से आ लिपटा कुहासा, ठण्डी हवाएं यादों की चली, और सिहर गया मैं भी जरा सा। पंछियों की तरह गई, यादें चहक चहक और दिल में गर्माहट भर गई, गर्म कॉफ़ी की महक, उम्रों से क़ैद थीं खुशबुएँ, यादों के तहखाने में, क़ायनात बहक उठी है, दरवाजों के खुल जाने से। जादू सा चल गया, कितना कुछ बदल गया , दिसम्बर के आ जाने से। -माधव अवाना लो आ गया दिसम्बर। लो आ गया दिसम्बर।। ©Madhav Awana

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