✍️आज की डायरी✍️
✍️उम्र गुजर जाती है... ✍️
फ़िर से एक रात यूँ ही जागते गुज़र जाती है ।
जब तमाम कमियों में मेरी ये नज़र जाती है ।।
सूनी आँखों में जब आँसुओं का सैलाब देखता हूँ ।
मेरी परछाईं ही मुझे देखकर तब सिहर जाती है ।।
तन्हाई भी मेरे साथ वक्त नहीं गुजारती है अब ।
समय के साथ उसकी भी आदत बदल जाती है ।।
किसे दोष दें अपने इस बिगड़े हालात के लिए ।
जब साथ निभाने के वादे से किस्मत भी मुक़र जाती है ।।
गिला ये नहीं खुद से कि क्या किया अबतक "नीरज"।
अफ़सोस है कि इन्हीं सोच में आधी उम्र गुज़र जाती है ।।
✍️नीरज✍️
©डॉ राघवेन्द्र
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