औरत
वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ;
छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये ।
लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ;
इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये ।
उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से;
मगर; लोगों को मसाला मिल गया भुनाने के लिये ।
जख्म नासूर बन गया; मेरा कानून के दायरे में ;
मगर;कोई ढूंढता रस्ता ; कद बढाने के लिये ।
कई खुश हैं चलो ; नदी के किनारे तो टूटे !
अब रस्ते कई खुलेंगे; प्यास बुझाने के लिये ।
फसाना-ए-गम किसे कहें "बादल" इन रुसवाइयों के आँगन में ;
नाचेगा कौन ? अब मुझे फिर से हंसाने के लिये ।
रचना -यशपाल सिंह "बादल"
©Yashpal singh gusain badal'
औरत
#Anhoni औरत
वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ;
छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये ।
लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ;
इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये ।
उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से;