ना जाने कितने साल और कितने महीने बीते..!
ना तो दिन और नाही तारीख का ख्याल...
ना कोई सवाल आया और नाही कोई जवाब....!
हमने वक्त को बर्बाद किया, तो वक्त ने हमें..!!
ठोकरें मिली बखूबी, पर.. संभालने वाले हाथ नहीं..!
रुलाने वाले भी मिले , पर.. कोई हंसाने वाला नहीं...
भटकी राह से, पर... कोई समझाने वाला नहीं..!
गुस्सा, नफ़रत, तिरस्कार.. बहुत ही खूबसूरती से दिया ज़िंदगी ने.... पर..
प्यार से दो बातें बोलना वाला नहीं..!
ज़िंदगी ने हज़ारों उलझने दीं...बस दो पल का सुकून नहीं..!
सबकुछ मिला मुझे... पर...मुझको मैं नहीं..!!!
©Mamta Kumari
#कहानी