अब तो आदत सी हो गयी है मुझे ठोकर खाने की,
मुस्कुरा कर अपने चेहरे से गम छुपाने की।
आँसू के शैलाब उमड़ रहे हैं आँखों के समंदर में,
बता क्या क़ीमत अता करूँ सब-कुछ भूल जाने की।
हम हैरान हैं परेशान हैं अब कुछ मेरे बस में नहीं,
जिंदगी बर्बाद हो रही है पर नशे की कश में नहीं।
कोई आसान रास्ता नहीं है खुशी को मोड़ लाने की,
बता क्या कीमत चुकानी है मुझे दुनियां छोड़ जाने की।
हश्र-ए-बेताब हो रही है लहू अब आब हो रही है,
डूब रहा आहिस्ता-आहिस्ता मौत हिं जवाब हो रही है।
डर है रूह को गुमनामी में कहीं खो जाने की,
कोई रास्ता ना दिख रहा वापस लौट आने की।
©Saurav Tiwari
#Akele