यह कैसी जमघट है,
यह इतनी भीड़ क्यों है,
उसकी एक झलक की खातिर,
इतना हंगामा तो नहीं होना चाहिए।
ऐसी भी क्या अकीदत,
ऐसी भी क्या इबादत,
खुदा वो ही है अगर,
उसका ज़माना तो नहीं होना चाहिए।
उसकी नज़र उठे तो सुबह,
झुके तो शाम हो जाए,
यूं एक अदा में लम्हों का,
ऐसे आना जाना तो नहीं होना चाहिए।
अंधेरी रातें हैं उससे रोशन,
उम्मीद उसी से है,
शमा वो ही है अगर,
सबको परवाना तो नहीं होना चाहिए।
वो है मोहब्बत,
बंदगी भी वही है,
हर एक दिल में मगर,
उसका ठिकाना तो नहीं होना चाहिए।
वो जिसे चाहे,
नज़र भर कर चाहे देखे जिसको,
ऐसे इस ज़माने भर को,
उसका दीवाना तो नहीं होना चाहिए।
©Shagun Sharma
#lonelynight