दर्द की कोई बोली नही होती, खुला आसमान, कोई तंग झोल | मराठी कविता Video

"दर्द की कोई बोली नही होती, खुला आसमान, कोई तंग झोली नही होती, लफ़्ज भी कमतर ही आंकते है, इशारे भी कहाँ काम आते है, गुमगश्त फ़सानो में बदल जाता है क्योंकि दर्द की कोई बोली नही होती। दिखावे से सदा बचता है, जो दिखाई दे वह कहाँ दर्द होता है, कोई शब्द नही, हुबहू जो दर्द का खांका खींचे, बड़ी मुश्किल से, लफ्जों को जोड़-तोड़, कोई बात निकाली जाती है, क्योंकि दर्द की कोई बोली नही होती। ©Prashant Roy "

दर्द की कोई बोली नही होती, खुला आसमान, कोई तंग झोली नही होती, लफ़्ज भी कमतर ही आंकते है, इशारे भी कहाँ काम आते है, गुमगश्त फ़सानो में बदल जाता है क्योंकि दर्द की कोई बोली नही होती। दिखावे से सदा बचता है, जो दिखाई दे वह कहाँ दर्द होता है, कोई शब्द नही, हुबहू जो दर्द का खांका खींचे, बड़ी मुश्किल से, लफ्जों को जोड़-तोड़, कोई बात निकाली जाती है, क्योंकि दर्द की कोई बोली नही होती। ©Prashant Roy

दर्द की बोली नही होती। @Suruchi Roy @Rakesh Srivastava @Vikram Raj bhojpuri official mahakal @Abdullah Qureshi @SHAHID HAROON

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