सारे बंधन छूट गए। जो निज बंधन से बांध गए तुम!! मोह | हिंदी कविता

"सारे बंधन छूट गए। जो निज बंधन से बांध गए तुम!! मोह कहूं कि प्रेम कहूं..? किन चिंतन में डाल गए तुम। देख गए जिन दृष्टियों से! पुष्प भांति खिल उठी मै!! किस वसंत की बात करूं मै!!! जो निज बंधन से बांध गए तुम!! छू गए तन ऐसे! निखर उठी मै अरनिमा सी! किस सौंदर्य की बात करूं मै!! सूक्ष्म से विस्तार हुई मै । मन पे ठहरी चैतन्याता! किस विधि की बात करूं मै!! किन चिंतन में डाल गए तुम!! बन बैठे हो अधर के गीत ! किस कोकिल की बात करूं मै!! सारे बंधन छूट गए। जो निज बंधन से बांध गए तुम!! ©NIDHI SINGH SONAM"

 सारे बंधन छूट गए।
जो निज बंधन से बांध गए तुम!!
मोह कहूं कि प्रेम कहूं..?
किन चिंतन में डाल गए तुम।
देख गए जिन दृष्टियों से!
पुष्प भांति खिल उठी मै!!
 किस वसंत की बात करूं मै!!!
जो निज बंधन से बांध गए तुम!!
छू गए तन ऐसे!
निखर उठी मै अरनिमा सी!
किस सौंदर्य की बात करूं मै!!
सूक्ष्म से विस्तार हुई मै ।
मन पे ठहरी चैतन्याता!
 किस विधि की बात करूं मै!!
किन चिंतन में डाल गए तुम!!
बन बैठे हो अधर के गीत !
किस कोकिल की बात करूं मै!!
सारे बंधन छूट गए।
जो निज बंधन से बांध गए तुम!!

©NIDHI SINGH SONAM

सारे बंधन छूट गए। जो निज बंधन से बांध गए तुम!! मोह कहूं कि प्रेम कहूं..? किन चिंतन में डाल गए तुम। देख गए जिन दृष्टियों से! पुष्प भांति खिल उठी मै!! किस वसंत की बात करूं मै!!! जो निज बंधन से बांध गए तुम!! छू गए तन ऐसे! निखर उठी मै अरनिमा सी! किस सौंदर्य की बात करूं मै!! सूक्ष्म से विस्तार हुई मै । मन पे ठहरी चैतन्याता! किस विधि की बात करूं मै!! किन चिंतन में डाल गए तुम!! बन बैठे हो अधर के गीत ! किस कोकिल की बात करूं मै!! सारे बंधन छूट गए। जो निज बंधन से बांध गए तुम!! ©NIDHI SINGH SONAM

#delusion

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