White समय हूं मैं – ना हुआ शुरू, न हुआ खत्म।
जी लिया हूं तुमको मैं, ना मिला हूं तुमको, ना मिली हो तुम।
यह जीवन है क्षणभंगुर, इस जीवन में बसंत ऋतु हो तुम।
आनंद की पायस, उत्कंठा का मानो विजय निधि हो तुम।
दृग जीवन के संघर्षों का मानो अमृत विधि हो तुम,
प्यासे को मिल जाए अमृत, ऐसी धारा निधि हो तुम।
आनंद की धारा लिए खड़ी हो, मानो आनंदमय हो तुम।
हृदय की प्यास जो बुझ जाए, तो मानो शरद ऋतु हो तुम।
सागर है कल्पनाओं का, मानो उसकी महफिल हो तुम।
उस महफिल से उठ जाऊं, जो मेरे सामने खड़ी हो तुम।
©କିଶାନ୍
"समय और तुम"
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