White ये बड़ी बड़ी इमारतें किसी दिन ढह जाने के लिए खड़ी है
खामोशी से देख रही हैं सारे शहर की हलचल को
मगर खुद खामोश हो कर खड़ी है
सोच रही होंगी ये खिड़कियां भी
मुझे देख कर,
आखिर क्या है इसके अंदर बेवजह
बेहिसाब सा खामोश खड़ा
एक नजर से केवल इमारत और दीवार को है देख रहा
उन्हें क्या पता किस दौर से मैं गुजर रहा
ना हारा हूं, ना टूटा हूं
बस मैं खुद ही में कहीं
लापता सा हूं
ढूंढ रहा हूं मैं भी अपने खोए वजूद को
इन्हीं झरोखों में किस मंजिल पे रहता था
यही तो खामोश होकर ढूंढ रहा हूं
किसी कहानी की किताब सी होकर रह गई
मेरी भी हसरतें यूं ही
क्या पता था,
मैं फिर अजनबी हो जाऊंगा इस शहर
के लिए फिर इक दफा।।
©MamtaYadav
#alone_sad_shayri