कभी- कभी "तराजू" का एक पल्ला भारी तो एक पल्ला हल्क | हिंदी व

"कभी- कभी "तराजू" का एक पल्ला भारी तो एक पल्ला हल्का होता हैं , फिर भी पल्ला में रखे समान को बराबर करने के लिए जाना जाता हैं, उसी तरह जिन्दगी में गम- खुशी का पल्ला होता हैं कभी गम का पल्ला भारी तो कभी कभी खुशी का पल्ला हल्का, लेकिन जब खुशी कम ही हो तो भी उस पल को बस जी लो, कैद कर लो उस लम्हें को, पर जिन्दगी को बराबर रखना ही सिखाते हैं । 3/10/24 ⏰4:22 p. m. (उबैदा खातून सिद्दिकी S) ✍️ ©Ubaida khatoon Siddiqui"

 कभी- कभी "तराजू" का एक पल्ला भारी तो एक पल्ला हल्का होता हैं , 
फिर भी पल्ला में रखे समान को बराबर करने के लिए 
जाना जाता हैं, 
उसी तरह जिन्दगी में गम- खुशी का पल्ला होता हैं 
कभी गम का पल्ला भारी तो कभी कभी खुशी का पल्ला हल्का, 
लेकिन जब खुशी कम ही हो तो भी उस पल को बस जी लो, 
कैद कर लो उस लम्हें को, 
पर जिन्दगी को बराबर रखना ही सिखाते हैं । 
3/10/24
⏰4:22 p. m. 
(उबैदा खातून सिद्दिकी S) ✍️

©Ubaida khatoon Siddiqui

कभी- कभी "तराजू" का एक पल्ला भारी तो एक पल्ला हल्का होता हैं , फिर भी पल्ला में रखे समान को बराबर करने के लिए जाना जाता हैं, उसी तरह जिन्दगी में गम- खुशी का पल्ला होता हैं कभी गम का पल्ला भारी तो कभी कभी खुशी का पल्ला हल्का, लेकिन जब खुशी कम ही हो तो भी उस पल को बस जी लो, कैद कर लो उस लम्हें को, पर जिन्दगी को बराबर रखना ही सिखाते हैं । 3/10/24 ⏰4:22 p. m. (उबैदा खातून सिद्दिकी S) ✍️ ©Ubaida khatoon Siddiqui

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