a-person-standing-on-a-beach-at-sunset आदत से मज़बूर हुआ,
गिरा तो चकनाचूर हुआ,
प्रेम की संकरी गलियों में,
ख़ुद से कितना दूर हुआ,
गफ़लत में फुंसी समझा,
बढ़ा तो फ़िर नासूर हुआ,
जिस घर में था अंधियारा,
जला दीप पुरनूर हुआ,
चढ़ा नशा जब भक्ति का,
आठों याम सुरूर हुआ,
मंज़िल मिली मुसाफ़िर से,
ग़म दिल से क़ाफूर हुआ,
देख घटाओं की शोखी,
'गुंजन' हृदय मयूर हुआ,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
#'गुंजन' हृदय मयूर हुआ#