माँ

"माँ हर व्यक्ति भिन्न है, पढ़कर जाना फिर दुनिया के हर कोने में,मां एक सी कैसे है? एक सी फिक्र, एक सी ममता हर मां के दिल में कैसे है? निस्वार्थ प्रेम की सीमा बतलाता शायद तभी हर व्यक्ति तुझे मां कहकर है बुलाता।।"

 माँ 











हर व्यक्ति भिन्न है, पढ़कर जाना
फिर दुनिया के हर कोने में,मां एक सी कैसे है?
एक सी फिक्र, एक सी ममता हर मां के दिल में कैसे है?
निस्वार्थ प्रेम की सीमा बतलाता
शायद तभी हर व्यक्ति तुझे मां कहकर है बुलाता।।

माँ हर व्यक्ति भिन्न है, पढ़कर जाना फिर दुनिया के हर कोने में,मां एक सी कैसे है? एक सी फिक्र, एक सी ममता हर मां के दिल में कैसे है? निस्वार्थ प्रेम की सीमा बतलाता शायद तभी हर व्यक्ति तुझे मां कहकर है बुलाता।।

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