" कैसे छोड़ दूँ उम्मीद मैं ,मन्जिल को पाने की,
मेरी कोशिशें जारी हैं, मन का सूरज जगाने की,
ये रात के स्याह अंधेरे भी , मेरा क्या बिगाड़ेंगें,
मैंने खा रखी है कसम, दीये दिल के जलाने की,
इतनी कमज़ोर भी नही ,जो डर जाऊँ हार से,
मेरे हौसले रखेंगें नींव, हर जंग जीत जाने की,
मेरे क़दमों को बाँधा है ,ज़माने के रिवाज़ों ने,
हर एक बाँध तोड़कर,ज़िद थी सब कुछ बहाने की,
रोशनी चाँद की होगी, मेरी उम्मीद के दम पर,
मैं ज़िद कैसे छोड़ दूँ ,चाँद को मुट्ठी में लाने की।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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